पंच महायज्ञ विधि एवं आर्य पर्व पद्धति पुस्तक का विमोचन किया


पुस्तक का विमोचन करते हुए


हरिद्वार, 27 दिसंबर। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के सीनेट हाल में स्वामी श्रद्धानन्द शोध संस्थान के निदेशक एवं विभागाध्यक्ष प्रो.सत्यदेव निगमालंकार द्वारा रचित पुस्तक पंच महायज्ञ विधि एवं आर्य-पर्व पद्धति का विमोचन भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद, भारत सरकार के सदस्य सचिव प्रो.के.रत्नम् ने किया। उन्होंने कहा कि भारत को समझने के लिए आर्य जीवन पद्धति एवं पर्वो को समझना बहुत आवश्यक है। उसी प्रकार से यज्ञ को समझने के लिए अलग-अलग विद्वानों ने अपने ही ढ़ंग से प्रचारित एवं प्रसारित किया है।


इस पुस्तक में महायज्ञ के बारे में वेदों, उपनिषदों और स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश को परिभाषित किया गया है। पंचमहायज्ञ एवं आर्य पर्वो के विषय में समाज के सदस्यों की मांग पर इस ग्रन्थ को तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा विषय ऋषियों पर आधारित है। ऋषियों ने मंत्र दृष्टा के रूप में वेदों, पुराणों एवं उपनिषदों का निर्माण किया है। जो आर्य जीवन पद्धति, राजनीति, अर्थशास्त्र, संस्कृति प्रत्येक बिन्दुओं पर बोधगम दिशा प्रदान करते हैं, लेकिन लम्बे समय से हिन्दु संघर्षशील रहा है और उपनिवेशवाद में भारतीय ज्ञान परम्परा को इसलिए प्रभावित किया क्योंकि वह नसलीय पर अपने आप को श्रेष्ठ साबित करना चाहते थे और आर्यो को विदेशी बतला दिया। स्वामी श्रद्धानन्द वैदिक शोध संस्थान के निदेशक प्रो.सत्यदेव निगमालंकार ने बताया कि इस पुस्तक में 100 पेज है। यह पुस्तक पंच महायज्ञ विधि एवं आर्य-पर्व पद्धति पर आधारित है। इस पुस्तक में ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, अथ अग्निहोत्री विधि, पितृयज्ञ, अतिथियज्ञ, बलिवैश्देव यज्ञ, आर्य समाज स्थापना और वैदिक संस्कृति द्वारा स्थापित सभी पर्वो में इस पुस्तक का प्रयोग किया जा सकता है। वर्तमान में मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय वेद और वैदिक यज्ञ को लेकर पूरे देश भर में पंच महायज्ञ विधि को जन-जन तक पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रही है।


प्रो.प्रभात कुमार ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा विषय वैदिक परम्पराओं के आधार पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देशानुसार स्नातक स्तर पर शुरू किया गया है। प्रो.सत्यदेव निगमालंकार की पंच महायज्ञ विधि एवं आर्य-पर्व पद्धति पुस्तक समाज के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध हो सकती है। विश्वविद्यालय में वेद और संस्कृत के छात्रों को इस पुस्तक का उपयोग करना चाहिए। वेद के छात्रों को यज्ञ और वेद मंत्रों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। वेद के छात्र ही विश्वविद्यालय की वैदिक कार्यप्रणाली को समाज तक पहुंचाने में मिल का पत्थर साबित हो सकते हैं। इस अवसर पर डा.दिलिप कुमार कुशवाहा, विकास राणा, अरविन्द कुमार शर्मा, सुभाष इत्यादि उपस्थित थे।


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